बेटी के साथ सिस्टम की शव यात्रा - Funeral of system with a Girl Child in Odisa

आरक्षण को लेकर लोगो में बहुत ही मतभेद हैं. आरक्षण अनुशुचित और पिछड़े वर्ग के लिए है या फिर कुछ वशिष्ट वर्ग के लिए हैं जिसमे ट्राइबल और सरकारी नौकरी वालो को मिलती हैं. इस आरक्षण के आड़ में लोग आज अपनी बुनियादी जरूरतों से भी महरूम हैं. उनके बारे में कोई नही सोचता हैं. चाहे कोई राजनेता हो या कोई सरकारी अधिकारी सब के सब इस सिस्टम में सिर्फ अपनी वयवस्था बनाने में लगे हुए हैं. हरियाणा का जाट आंदोलन , मराठो का आंदोलन , नोटबंदी के खिलाफ पुरे देश में राजनितिक पार्टीओ का आंदोलन हो रहा हैं. सभी को अपने अनुसार ही सिस्टम चाहिए. लेकिन, इस वयवस्था में इन नेताओ को लाने में जिनका सबसे बड़ा योगदान हैं. वयवस्था में उनके लिए कोई जगह नही हैं. आप सभी सोच रहे होंगे आज अचानक यह बात कैसे याद आ गई. इन सब बातो के पीछे एक आम इंसान का दर्द हैं जो अपनी बेटी को कन्धा देने की बजाय अपने ही कंधे पर उसको शमशान ले जाता हैं. उस पिता को कोई शौख नही हैं कि अपनी बेटी का अंतिम संस्कार करने के लिए अपने कंधो पर उठाये लेकिन उसको ओडिशा सरकार की वयवस्था ने ऐसा करने पर मजबूर किया. यदि उस गरीब पिता कि बेटी कि जगह कि सरकारी अधिकारी या किसी मंत्री विधायक कि बेटी होती तो क्या ऐसा ही होता. जी नही, तब तो बेवजह ही गाड़ियों कि लाइन लग जाती.



जी हाँ ओडिशा के एक गांव में फिर दाना मांझी वाली घटना दुहराई गई बीएस फर्क इतना था की दाना माझी के कंधे पर उनकी पत्नी थी लेकिन अभी अपने पिता के कंधे पर उसकी 5 साल की बेटी थी. लेकिन सिस्टम की गैर-जिम्मेदाराना हरकत की वजह से कन्धों पर बेटी के शव को लेकर15 किलोमीटर का रास्ता तय करके शमशान  पंहुचा.

 यदि अस्पताल एक एम्बुलेंस नही दे सकती तो यह अंदाज लगाना मुश्किल नही होगा कि उस हॉस्पिटल में गरीबो के इलाज के लिए डॉक्टर भी होंगे या नही,  या फिर वह सरकार से वेतन लेकर अपना निजी क्लिनिक चलते होंगे. उनके पास सरकारी हॉस्पिटल में आकर गरीबो के इलाज करने का समय नही होगा. क्योकि इससे पहले भी खबर आई थी कि इलाज के आभाव में एक पिता ने अपने 8 साल के बेटे को खो दिया. इससे पहले ओडिसा में दाना मांझी अपने पत्नी के शव को कंधो पर लेकर ही अस्पताल से निकले थे. कारण हॉस्पिटल से एम्बुलेंस नही मिला . यदि वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के नियमो को देखा जाय तो शहरो में एम्बुलेंस किसी भी हालात में 20 मिनिट में पहुचना चाहिए वही गावँ और सुदूर इलाको में एम्बुलेंस को 30 और 35 मिनिट में पहुचना चाहिए. लेकिन यहां ऐसा कुछ भी नही हैं. इसके बावजूद भी सबसे आश्चर्य वाली बात यह हैं कि किसी गैर सरकारी संस्था ने भी इनकी सुध नही ली. ऐसे में इस स्वार्थी वयवस्था में मानवता की भी मौत होती हुई दिखाई दे रहा हैं.

ऐसा बार-बार क्यों दुहराता जा रहा हैं इसका जबाब कौन देगा. एक बार किसी के साथ ऐसा हुआ उसको वयवस्था का चूक मन जा सकता हैं. लेकिन जब दुबारा वही गलती होती हैं तो जाहिर तौर पर जानभूझ कर ही होती हैं. यदि ऐसे ही सिस्टम जनता के साथ मजाक करती रही तो वह दिन दूर नही होगा जब जनता इस खोखली वयवस्था के खिलाफ कोई भी कड़ा कदम उठाने में नही कतराएगी. क्योकि समय हेश एक जैसा नही होता हैं. यह देखने लायक होगा कि वहां की जनता कुछ करे इससे पहले सरकार और प्रशासन को दुरुश्त करते हैं या नही. यदि इसके बाद भी कुछ नही सुधर तो सही मांयने में यह ओडिसा के सरकार और प्रशासन का शव यात्रा होगा.






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