गलतियों को छुपाने के लिए फिल्म 'इंदु सरकार' का विरोध - Film indu sarkar controversy

प्रत्येक साल बॉलीवुड में कुछ एक ऐसी फिल्मे बन जाती हैं जिनका विवादों से गहरा नाता जुड़ जाता हैं. पिछले साल पंजाब के नशा से लिप्त युवाओ पर आधारित फिल्म 'उड़ता पंजाब' पर भी अच्छा खासा विवाद हुआ और उसके बाद फिल्म हिट हो गई. उसके संजय लीला भंसाली की आनेवाली फिल्म 'पद्मावती ' तो सूटिंग शुरू होते ही विवादों के घेरे में आ गई. इसकी वजह से भंसाली ने राजस्थान में कभी न सूटिंग करने की बात कह डाली. ताजा मामलो की बात करे तो मधुर भंडारकर की फिल्म 'इंदु सरकार' पर विवादों के काले बदल छाये हुए हैं. वही फिल्म के कलाकार थोड़े चिंतित हो गए हैं उनका कहना है कि आप सिर्फ ट्रेलर देखर पूरी फिल्म की स्टोरी का पता नहीं लगा सकते,  रही बात अभिव्यक्ति के आजादी की जो बिलकुल ही आधारहीन है. 

इस फिल्म पर विवाद का कारण हैं गाँधी परिवार. फिल्म  के तीन मिनिट का ट्रेलर देखने के बाद गाँधी की परिवार को लगता हैं कि फिम्ल में स्वर्गीय संजय गाँधी और पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गाँधी के व्यक्तित्व को गलत दिखाया जा रहा हैं. जिससे इन दोनों नेताओ के साथ साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के लिए देश की आम जनता को गलत सन्देश जायेगा. जिससे पार्टी और परिवार की इमेज ख़राब होगी. इसीलिए कांग्रेस इस फिल्म का पुरजोर विरोध कर रहा हैं.  इसके पहले भी राजनीती से सम्बंधित कई फिल्मे आ चुकी हैं जिसका विरोध तो हुआ लेकिन खुल कर नहीं. 


यदि इस फिल्म के आधार कि बात करे तो 1975 का आपातकाल जो कि उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रा गाँधी के दबाव में राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद घोषित किया गया था. इस आपातकाल कल के पीछे इंद्रा गाँधी कि मनमानी थी जिन्होंने अपनी गलतियों को छुपाने के लिए जबरदस्ती आपातकाल घोषित करवाया था. 1971 के आम चुनाव में कांग्रेस को  पूर्ण बहुमत मिला था. लेकिन विपक्ष (जनता पार्टी) के नेता राज नारायण ने इस बहुमत के खिलाफ कोर्ट में चुनौती दे दिया. इसके बाद यह दूध का दूध और पानी का पानी हो गया कि यह बहुमत मिली नहीं बल्कि खरीदी गई है. ऐसे में कोर्ट ने इंद्रा गाँधी पर 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ने का प्रतिबन्ध लगा दिया, जो इंद्रा जी को रास नहीं आया, ऐसे में अपने आप को बचने के लिए ही इन्होने आपातकाल की घोषणा करवाई. हालाँकि 2 साल आपातकाल के बाद लोकसभा भंग कर चुनाव करने का ऐलान किया जिसमे उनको मुँह की खानी पड़ी. इंदिरा गाँधी अपने गढ़ रायबरेली से ही चुनाव हार गई. आगे जो हुआ उसे सभी जानते हैं.एक कहावत हैं कि "एक गलती को छुपाने के लिए और हजार गलतिया करनी पड़ती हैं." यदि फिल्म की पटकथा इससे एकदम मिलती जुलती हैं तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेसी पार्टी के साथ साथ इंद्रा गाँधी के इस मनमानी को सबके सनमे आने नहीं देना चाह रहे हैं. इस लिए इसका इतना कड़ा विरोध भी हो रहा हैं. इतना ही नहीं इसे भाजपा की साजिश भी करार दी जा रही हैं.  नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अप्रत्यक्ष तौर से भाजपा को आड़े हाथो लिया हैं. विरोध इस हद तक हो रहा हैं कि फिल्म की टीम प्रेस कॉन्फ्रेंस भी नहीं कर पा रही हैं. कोंग्रेसी सेंसर बोर्ड के अधिकारियो से मिले भी थे. दूसरी तरफ मधुर भंडारकर ने कांग्रेस कार्यकर्ताओ के विरोध प्रदर्शन को लेकर राहुल गाँधी को खरी खरी सुनते हुए पूछा कि क्या आप इन आवारा गुंडों का समर्थन कर रहे हैं? हालत को देखते हुए मधुर भंडारकर को अतिरिक्त सुरक्षा मुहैया कराया गया हैं. इससे पहले भी गुलजार की फिल्म गाँधी और प्रकाश झा कि फिल्म  "राजनीति" का विरोध हुआ था लेकिन थोड़ा बहुत काट-पिट कर फिल्म रिलीज़ हो ही गई. इस फिल्म के साथ भी कुछ ऐसा ही होगा. हालाँकि थोड़े दिनों बाद यह एक हवा के झोके से ज्यादा कुछ नहीं होगा. फिल्म रिलीज़ भी होगी और लोग देखेंगे भी. क्योकि विवादित फिल्मे देखने की जिज्ञाषा लोगो में अपने आप आ जाती हैं. लोग सोचते हैं आखिर इसमें ऐसा क्या हैं जो इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया. 


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