मासूमो के मौत का जिम्मेदार हैं घूसखोर व्यवस्था - The bribe arrangements are responsible for the death of the innocent

बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुए बच्चो की मौत से पूरा देश आहात हैं. इसके साथ ही इसी बहाने राजनितिक पार्टिया जनता के बिच अपना अपना नंबर बनाने में लगी हुई हैं, जैसा की हर एक घटना के बाद होता हैं. इसे ऐसे भी कह सकते है कि राजनीती में यह आम बात हैं. ऐसा कोई भी घटना घटने पर विपक्ष सत्ता को दोषी ठहरता हैं. और थोड़ा बहुत काम के साथ ही सत्ताधारी अपने बचाव में लगे रहते हैं. लेकिन इन सबके पीछे हो रहे भ्रस्टाचार और भ्रस्टाचारी व्यवस्था किसी को दिखाई नहीं देता हैं. विपक्ष के नाता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कहना है कि इसकी जिम्मेवार सरकार हैं. कांग्रेस के नेता गुलाम नवी आजाद साहब ने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री से इस्तीफे कि मांग कर रहे हैं. बहन जी मायावती ने दोषियों के लिए कड़ी से कड़ी सजा कि मांग कर रही हैं. इस पर सत्ताधारियो की तरफ से दोषियों को यथोचित सजा देने के लिए अपने आप को प्रतिबद्ध दिखा रहे हैं. लेकिन इन बच्चो के मौत का असली जिम्मेदार कौन हैं इस बात पर शायद ही किसी का ध्यान गया होगा. 


इन मासूमो के मौत का जिम्मेदार हैं हमारा घूसखोर व्यवस्था, जी हाँ! यह पैसे खाने वाली व्यवस्था, जिसे सिर्फ और सिर्फ पैसे से प्यार हैं इसके लिए यह कुछ भी करने को तैयार है जैसे कि इन बच्चो की परवाह किये बिना बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य राजीव मिश्रा ने ऑक्सीजन गैस सप्लाई देने वाली कंपनी पुष्पा सेल्स का 69 लाख रुपया बकाया नहीं चुकाया. और यह बकाया तब नहीं चुकता हुआ जबकि पैसा सरकार को देना हैं. पैसा नहीं चुकाने का मुख्य कारण था मिश्रा जी को मिलने वाला मिश्री का भोग(उनका कमीशन) का नहीं मिलना. जिसकी पुष्टि कुछ समाचार एजेंसी ने भी किया हैं. इतना ही नहीं इन्होने यह पर अपनी मनमानी करते हुए मोदी केमिकल्स प्राइवेट लिमिटेड का एग्रीमेन्ट को रद्द करके ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए  पुष्पा सेल्स से सेवा लेने लगे. मोदी केमिकल्स का एग्रीमेन्ट रद्द करने के पीछे भी इनका अपना स्वार्थ ही होगा. मोदी केमिकल्स का एग्रीमेन्ट तो रद्द किया ही साथ में उसका भी 20 लाख रूपये बकाया अभी तक रखा हुआ हैं. आज के परिपेक्ष में जो खबरे आ रही हैं उसमे बताया जा रहा हैं कि इस हॉस्पिटल की अंदरूनी व्यवस्था का लचर होने का एकलौता कारण है कमीशनखोरी, आपको बता दे की पूर्वांचल में यह एक ही अस्पताल है जहाँ इंसेफ़ेलाइटिस का इलाज उपलब्ध है. 800 बेड वाले इस अस्पताल में नेपाल बॉर्डर, बिहार के सिवान, छपरा और उत्तर प्रदेश का पुरे पूर्वांचल के इंसेफ़ेलाइटिस के मरीज यहा इलाज के लिए आते है.  ऐसे अस्पताल के इसी हाल की वजह से इंसेफ़ेलाइटिस हर साल कहर बरपा रही है. यह बात सत प्रतिशत सही है की बरसात के मौसम में अगस्त - सितम्बर में यहा मरीजों की संख्या बढ़ जाती है. यदि स्वास्थ्य विभाग को इस बात की जानकारी पहले से है तो इसके लिए कुछ तो तैयारी होनी चाहिए. मंत्री और विधायकों के किसी दौरे की तैयारी में तो कोई कमी नहीं रहती है. तो फिर हॉस्पिटल में रोगियों के लिए व्यवस्था को ध्यान क्यों नहीं दिया जाता है? बात यह है कि दौरे में लोगो को प्रभावित करना होता है मंत्री या विधायक उस समय सब कुछ प्रत्यक्ष देख रहे होते है, लेकिन हॉस्पिटल कि व्यवस्था देखने वाले ही जब कमीशन खाने लगे तो बात ही अलग है. इस हॉस्पिटल में हुई घटना में जिस डॉक्टर कफील खान की तारीफ हो रही थी असल में वही विलन निकल गए. हालाँकि वह पहले ऐसे डॉक्टर नहीं है जिनका प्राइवेट क्लिनिक है? 


आज कल का कोई उत्तम व्यवसाय है, तो वह है शिक्षा और स्वास्थ्य. जिसमे अथाह पैसा है. यदि सिर्फ इस संस्थान का जिक्र करे तो इस घटना का जिम्मेदार हर वह व्यक्ति है जो इसके वित्त विभाग का देख रेख करता है या इससे जुड़ा हुआ है. यह सारी बाते साफ साफ नजर आ रही है कि वहा के हर एक विभाग में भ्रस्टाचार कैसे मकड़ी के जाल की तरह फैला हुआ है. 
इस हालत में यह अस्पताल खुद ही बीमार हैं ऐसे में यहां रोगियों का क्या इलाज होगा. ऐसा नहीं हैं कि सिर्फ इसी हॉस्पिटल में ऐसा होता हैं. नहीं यह हालत लगभग सारे सरकारी मेडिकल संस्थान के हैं. जहा मामूली इंजक्शन से लेकर ब्रांडेड दवाये को जो हॉस्पिटल में उपलब्ध होनी चाहिए, बाजार के मेडिकल स्टोर में उपलब्धहै. क्योकि जो दवाये सरकारी अस्पतालों के लिए आता हैं उसे सरकारी मुलाजिम कमीशन खाकर प्राइवेट मेडिकल स्टोर को दे देता हैं, और मरीजों को उसी स्टोर का पता बताते हैं. ऐसे में दोनों का काम हो जाता हैं. 


अब बच्चो के टीकाकरण को ही देखे ले, बच्चो को 2 साल की उम्र तक लगने वाले टिके लगभग 32 है जिसमे मुश्किल से BCG , DPT और हैपेटाइटिस का टिका ही सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध होता हैं. उसके बाद रोटा वायरस, MMR , फ्लू, measles , chickenpox , OPV , इंसेफ़ेलाइटिस जैसे टिके लगाने के लिए प्राइवेट अस्पतालों का चक्कर तो लगाना ही पड़ता है साथ में इनकी फी भी काफी महंगे हैं जिसे हर कोई बहम नहीं कर सकता हैं. यदि सरकार इन टीको को लगाना अनिवार्य बताती हैं तो ये टिके सरकारी अस्पतालों में क्यों नहीं लगते हैं. क्यों माता-पिता, अभिभावकों को इसके लिए एक का तीन मूल्य चुकाना पड़ता हैं? यहां भी ऐसे ही हो सकता हैं कि टिके बनते तो सरकार के देख रेख में होंगे मगर आम जनता तक पहुंचते पहुंचते अन्य दवाओं और डॉक्टर के सेवाओं की तरह प्राइवेट अस्पतालों में चले जाते हैं.

पूर्वांचल के गाँधी कहे जाने वाला बाबा राघव दस के नाम पर गरीबो को स्वास्थ्य सेवा मुहैया करने के लिए बना यह बीआरडी  मेडिकल कॉलेज आज मुश्किलों से गुजर रहा हैं. ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह इस व्यवस्था को फिर से तंदरुस्त करे और दोषियों को ऐसे सजा दे कि फिर कोई किसी भी हॉस्पिटल में ऐसे करने कि हिम्मत न करे. 

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