राजधानी में कूड़े का पहाड़ और खतरे से बेखबर सरकार - Garbage hill in delhi and irresponsible govt

हमारे देश की हालात दिन प्रतिदिन ऐसे होते जा रहे है जिसे बया करना आसान नहीं है. जिसे दर से जनसंख्या बढ़ रही हैं उससे कुछ ही काम दर मृत्यु की होगी. कही बाढ़ से कही तो कही हादसे से, कही इमारतों के गिरने से तो कही कूड़े के गिरने से मतलब हर तरफ मौत ही मौत सुनाई और दिखाई दे रहा हैं.  ऐसे में एक नजर डाला जाय तो हम कही भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं.  पिछले दो महीने यानि जुलाई - अगस्त  सिफर और सिर्फ दिल दहला देने वाली घटनाएं घाटी हैं. इस मानसून में असम, बिहार, राजिस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिसा जैसे राज्यों ने बाढ़ का संकट झेला जिसमे एक तरफ 1000 से ज्यादा लोगो ने अपनी जान गवा दी, तो दूसरी तरफ लाखो लोग बेघर हो गए. मानसून के साथ ही पर्वांचल में जापानी बुखार आता हैं जिसने बिहार, उत्तर प्रदेश और झांखण्ड के सैकड़ो बच्चो को निगल लिया. इससे लोग सभले भी नहीं थे की प्रभु की रेल ने लोगो के यात्राओं की तेल निकल दी. 10 दिनों में तीन रेल हादसे ने रेल मंत्री को मंत्रालय छोड़ने पर मजबूर कर दिया. उसके बाद अब बरी थी माया नगरी की. जहा हुई बारिश ने पिछले 12 साल का रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया. यहां भी जान माल का नुकशान हुआ. मानसून के रूकने का इंतजार कर रहा था दिल्ली के गाजीपुर का कूड़ा डंपिंग पहाड़. क्योकि बारिश में शहरो में इतना पानी भर जाता हैं कि कूड़ा का शहर में फैलना एक साथ लोग शायद बर्दास्त नहीं कर पाते. 

70 एकड़ में फैले गाजीपुर के इस कूड़े के पहाड़ ने गिर कर शायद एक चेतावनी दी है कि यदि अभी भी समाज और सरकार इसके बारे में नहीं सोचेंगे तो महज 20 -25 सालो में यह पूरी दिल्ली को ढक लेगी. क्योकि दिल्ली में ऐसे ऐसे चार पहाड़ हैं. भलस्वा , ओखला, ग़ाज़ीपुर और नरेला में दिल्ली नगरनिगम के आधिकारिक कूड़ा डंप साइट हैं. जिसमे से नरेला को छोड़ तीन साइट 10 साल पहले ही अपने लिमिट को पूरा कर चुके हैं. उसके बाद भी यहाँ रोज लगभग 3000 मैट्रिक टन कूड़ा रोज फेका जाता हैं. वेस्ट को ऊर्जा में बदलने के लिए दिल्ली में तीन प्लांट हैं. और इन तीन प्लांट में पुरे दिल्ली के निकले कूड़े का  सिर्फ 30% ही इतेमाल होता हैं. बाकि का 70% कूड़ा इन्ही जगहों पर छोड़ दिया जाता हैं. एक अनुमान के अनुसार अगले 10 सालो में इन कूड़े के पहाड़ो की उचाई दिल्ली के कुतुबमीनार के बराबर हो जाएगी. 


यह सोचने वाली बात हैं की आने वाले दिनों में राजधानी दिल्ली में इंसानो से ज्यादा कूड़ा होगा. लेकिन इस अनजान खतरे से बेखबर सरकार आरोप प्रत्यारोप की राजनीती में लगी है. अब इसे घटने को ही देख लीजिये. घटना स्थल पर मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने इसकी जिम्मेदारी नगरनिगम पर डालते हुए कहा कि इसके लिए उपराजयपाल से बात करेंगे. वही पूर्वी दिल्ली के संसद के अनुसार नगर निगम दिल्ली सरकार के अंदर आता हैं जहा कोई भी काम करने के लिए सरकार बहुत मुश्किल से मानती हैं. लेकिन इस घटना के प्रत्यक्ष दर्शियों के अनुसार ये लोग सिर्फ और सिर्फ राजनीति करना जानते हैं इन्हे बस मुद्दा मिलना चाहिए. देखा जाय तो इस तरह के मुद्दे राजनीति करने के लिए नहीं बल्कि सोचने का विषय हैं नहीं तो ऐसा नहीं हैं कि इससे आम नागरिक को ही परेशानी हैं शहर में रहने वाले हर एक को इसके परिणाम को भुगता होगा. इसलिए समय से पहले सरकार के साथ साथ आम जनता को भी इसके लिए आगे आना होगा.


इस परेशानी से बचने के लिए समान्य जनता की भागीदारी के बारे में विस्तार अगले पोस्ट में... 

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