प्रद्युम्न हत्याकांड में दोषी पाए गए छात्र के पिता पहले इस बात को मानने से ही इंकार कर रहे थे कि मेरे बीटा तो ऐसा कर ही नहीं सकता. यदि वो ऐसे किया होता तो उसके कपड़े गंदे होते. देखा जाय तो साफ शब्दों में उन्होंने अपने हत्यारे बच्चे का बचाव किया जैसे उसकी हर गलती पर करते आये होंगे. लेकिन उन्हें इस बात का अहसास तो ही गया होगा कि पहले ही इसे संभाल लिया होता तो यह दिन नहीं देखने पड़ते. जितना समय उसके बचाव में लगा रहे है पहले उतना समय उसके साथ बिताया होता तो ऐसी घटना कि नौबत ही नहीं आती. किसी दूसरे के घर का चिराग ही नहीं बुझता. खैर होनी को कोई टाल नहीं सकता.
इस बदलते परिवेश में बच्चे इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट में ही व्यस्त हैं, जबकि उनको जरूरत है एक ऐसे साथी की जिनके साथ बच्चा खेले-कूदे अपने भावनाओ को व्यक्त कर सके. अपनी बाते बेझिझक कह सके. लेकिन आज के इस स्वयं केंद्रित वाले समाज के व्यक्तियों पास आपने नवनिहालों के लिए ही समय नहीं हैं. जिन्हे उनकी सबसे ज्यादा जरूरत हैं. और वही व्यक्ति उस बच्चे से अपेक्षा रखता है की मेरे बच्चा एक आदर्श बच्चा बने. स्कूल में हमेशा टॉप करे. जिससे समाज में मेरी इज्जत बरकरार रहे. ऐसे में सभी माता पिता को समय की गंभीरता को समझते हुए अपने बच्चो को समझने और उनके साथ समय बिताने की जरूरत हैं ताकि फिर से किसी के घर का चिराग न बुझे.
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