प्रारंभिक शिक्षा से बंचित बचपन - Childhood without primery education

प्रद्युम्न हत्याकांड ने पुरे देश को झकझोर दिया लेकिन उससे भी हैरान करने वाली बात यह है कि उसकी हत्या करनेवाला कोई और नहीं बल्कि उसी के स्कूल का 11वि क्लास का छात्र हैं, और उसने हत्या इसलिए की कि उसे एग्जाम नहीं देना था. उसे इस बात की बिलकुल भी परवाह नहीं होगा कि जो वह करने जा रहा है उसका क्या परिणाम होगा, वह सही कर रहा है या गलत. हालाँकि सभी माता पिता बहुत ही छोटी उम्र में ही बच्चो को यह बतलाना शुरू कर देते है कि क्या सही और क्या गलत. लेकिन कुछ रसूखदार परिवार के बच्चे माता पिता की वजाय आया और नौकरो की निगरानी में पलते. ऐसे बहुत छोटी उम्र में वे उदंड हो जाते है. जो उनका ख्याल रखता है उनके साथ प्यार से बात करने की जगह उनपर रौब झड़ने लगते हैं. अपनी ज़िंदगी में व्यस्त माँ-बाप को भी शायद इसका अहसास नहीं होता हैं की मेरे बच्चा क्या सिख रहा हैं. कहा जाता है कि बच्चो का पहला स्कूल उसका घर और पहली शिक्षक उसकी माँ होती हैं. लेकिन आज के परिदृश्य में सब बदल गया हैं. मज़बूरी बस या किसी और कारण से कामकाजी माँ को अपने बच्चो को क्रैच में रखना पड़ता है या फिर बच्चे आया की देख रेख में पलते हैं. ऐसे में बच्चे अपने प्रारंभिक शिक्षा से ही बंचित हो जाते हैं. यही संजुक्त परिवार में बच्चो के साथ ऐसी समस्या नहीं आती हैं. लेकिन संजुक्त परिवार आज के जमाने में गावं में एक दुका हैं भी तो शहरों में बिलकुल भी नहीं हैं. जिसका खामियाजा आज की पीढ़ी भुगत रही हैं.



प्रद्युम्न हत्याकांड में दोषी पाए गए छात्र के पिता पहले इस बात को मानने से ही इंकार कर रहे थे कि मेरे बीटा तो ऐसा कर ही नहीं सकता. यदि वो ऐसे किया होता तो उसके कपड़े गंदे होते. देखा जाय तो साफ शब्दों में उन्होंने अपने हत्यारे बच्चे का बचाव किया जैसे उसकी हर गलती पर करते आये होंगे. लेकिन उन्हें इस बात का अहसास तो ही गया होगा कि पहले ही इसे संभाल लिया होता तो यह दिन नहीं देखने पड़ते. जितना समय उसके बचाव में लगा रहे है पहले उतना समय उसके साथ बिताया होता तो ऐसी घटना कि नौबत ही नहीं आती. किसी दूसरे के घर का चिराग ही नहीं बुझता. खैर होनी को कोई टाल नहीं सकता.





इस बदलते परिवेश में बच्चे इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट में ही व्यस्त हैं, जबकि उनको जरूरत है एक ऐसे साथी की  जिनके साथ बच्चा खेले-कूदे अपने भावनाओ को व्यक्त कर सके. अपनी बाते बेझिझक कह सके. लेकिन आज के इस स्वयं केंद्रित वाले समाज के व्यक्तियों पास आपने नवनिहालों के लिए ही समय नहीं हैं. जिन्हे उनकी सबसे ज्यादा जरूरत हैं. और वही व्यक्ति उस बच्चे से अपेक्षा रखता है की मेरे बच्चा एक आदर्श बच्चा बने. स्कूल में हमेशा टॉप करे. जिससे समाज में मेरी इज्जत बरकरार रहे. ऐसे में सभी माता पिता को समय की गंभीरता को समझते हुए अपने बच्चो को समझने और उनके साथ समय बिताने की जरूरत हैं ताकि फिर से किसी के घर का चिराग न बुझे.


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