कहा से आई मन में ऐसी सोच - Such thinking comes from where in his mind

दिल्ली के उस स्कूल की खबर पर सभी हैरान रह गए जब पता चले की एक 4 साल की लड़की का यौन शोषण एक 4 साल के लड़के ने किया है. इस खबर पर किसी को विश्वास नहीं हो रहा है चाहे स्कूल प्रशासन हो फिर कोई बहरी व्यक्ति. यहां तक की शिशु विशेष्ज्ञ चिकित्स्कों को भी इस बात पर असमंजस है. लेकिन यह घटना 100 फीसदी सच्चा है. ऐसी घटनाये दिल को दहला देती है. ऐसे में छोटे बच्चो के माता पिता को अपने बच्चो की सुरक्षा का चिंता होना लाजमी है. लेकिन सोचने वाली बात यह है कि उतने छोटे बच्चे ने ऐसे क्या सोच कर किया होगा?  क्या वह ऐसी हरकत खेल-खेल में कर गया या फिर जान बुझ कर. आखिर उसके मन में ऐसी सोच कहा से आई.

भविष्य क्या होगा यह कोई नहीं जनता है लेकिन वर्तमान में यह घटनाये दिल को चीर रही है. एक नजर ऐसी घटनाओ पर डाला जाय तो पैदा होने से लेकर मरने तक महिलाओ को कभी ना कभी इसका शिकार होना ही पड़ता है. दिल्ली वाली यह घटना पहली नहीं है और आखिरी तो बिलकुल भी नहीं. दिन प्रतिदिन ऐसी घटनाये बढ़ती ही जा रही है. माता पिता को सलाह दिया जा रहा है कि बच्चो को गुड़ टच और बैड टच के बारे में बताये, ताकि उन्हें सही गलत का पहचान हो. लेकिन जब बच्चे ही ऐसी हरकते करने लगे तो फिर गुड़ टच और बैड टच के बारे में बता कर ही कोई क्या कर लेगा. आज कल पैदा होते ही बच्चो को मोबाइल चाहिए थोड़ा होश संभाला नहीं की कंप्यूटर चाहिए. व्यक्तिगत परिवार में बच्चो को व्यस्त रखने के लिए माता पिता भी बच्चो के हाथो में मोबाइल पकड़ा देते है. बच्चो को मोबाइल के साथ व्यस्त रखना गलत नहीं है. गलत यह है कि हमने अपने फ़ोन और कंप्यूटर में क्या रखा है. बच्चे के हाथ में मोबाइल जाने से पहले कौन सी वेबसाइट खुली थी. हमारे फ़ोन मेमोरी में कुछ ऐसा तो नहीं है जो बच्चो को नहीं देखना चाहिए. यदि हैं तो उसे पासवर्ड लगाकर बच्चो की पहुंच से सुरक्षित रखे क्योकि आज की तकनिकी दुनिया में जो चाहिए वह कुछ पलो में मिल जाता है. ऐसे में अपने बच्चो पर कड़ी नजर रखनी चाहिए. क्योकि हो सकता है बच्चे ने ऐसा कुछ मोबाइल में देखा हो. आज कल टीवी पर बहुत कुछ ऐसा आता है जो बच्चो के लिए हानिकारक ऐसे में माता पिता को टीवी देखते समय भी बच्चो का ख्याल रखना चाहिए. क्योकि यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है की आज कल के बच्चे बहुत ही सेंसिटिव हो रहे है. कुछ भी उनके दिमाग पर बहुत जल्द असर करता है.




ऐसे में उस बच्चे ने ऐसा कुछ देखा होगा तभी उसने इस घटना को अंजाम दिया है क्योकि बिना कुछ देखे या जाने बच्चे ऐसा कर ही नहीं सकते. इस घटना में आरोप साबित हो चूका है. दोषी सामने है लेकिन पुलिस उसे सजा नहीं दे सकती क्योकि IPC के सेक्शन 82 के अनुसार 7 साल से कम उम्र के बच्चे का कोई भी अपराध अपराध नहीं माना जाता है और दोषी निर्दोष है. लेकिन उसी समय में वह छोटी सी बच्ची पीड़ा को बर्दस्त कर रही है. किसी को विश्वास नहीं होने वाली इस घटना में लड़की का मेडिकल भी कराया जा चूका है जिसमे इसकी पुष्टि हुई है. इस घटना के बाद लड़की की माँ ने लड़के को स्कूल से निकलने की मांग की है. खैर स्कूल से निकले से पहले बच्चो को ऐसी शिक्षा की जरूरत है जिससे की वह सही और गलत में फर्क कर सके. क्योकि वैसे भी छोटे बच्चो को लोग ज्यादा मरते- डाटते नहीं है लेकिन इसके लिए कुछ सजा तो होना ही चाहिए. ताकि वह किसी और के साथ ऐसा व्यवहार ना करे.


 भारत में यौन शोषण के आरोपियों की सजा भी अदालत में तय होती है. लेकिन सजा पूरी होते ही वह समान्य ज़िंदगी ज़ीने लगते हैं, लेकिन विदेश में ऐसा कतई नहीं होता है, कुछ समय पहले ही एक खबर आई थी की विदेश में एक लड़का लड़कियों से सोशल साइट पर गलत गलत बाते करता है . जिस पर  शिकायत दर्ज कर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया, लेकिन वहा पता चले की लड़का मानशिक रोग से पीड़ित है ऐसे में उसे सजा नहीं दी जा सकती उसे जेल नहीं भेजा जा सकता लेकिन इसके अलावा दोषी किसी भी सार्वजानिक स्थान पर नहीं जा सकता है जैसे कोई पार्क, मॉल या फिर सिनेमा घर. और ऐसे लोगो का नाम एक स्पेशल रजिस्टर में दर्ज होता हैं ताकि उनपर नजर रखी जा सके. हमारे भारत में ऐसे कानून की जरूरत है ताकि एक बारदात के बाद दोषी दूसरे बर्दात को अंजाम ना दे सके.


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