स्कूल में बिताए जीवन के 14 साल - Spent 14 years of life in school



हमारी सभ्यता में स्कूलों का अस्तित्व सदियों से है। और अब यह हमारे सामाजिक तंत्र का एक अहम हिस्सा बन गए हैं। स्कूल वो जगह है जहां बच्चों को सिर्फ नई चीजें सीखने के लिए ही नहीं, जीवन के बारे में सीखने के लिए भेजा जाता है। अब इंटरनेट के दौर में स्कूलों को बदलने की जरूरत है, मगर बदकिस्मती से बदलाव का दौर स्कूलों में सबसे बाद में आता है।


कहा जाता है कि अगर एक देश को बदलना हो तो सबसे पहले प्राथमिक स्तर की स्कूलिंग में बदलाव जरूरी हैं। क्योंकि स्कूल में ही एक पीढ़ी की नींव तैयार होती है, स्कूल ही विचारों के इन्क्यूबेशन सेंटर होते हैं जहां नए आइडिया पनपते हैं। जिस दिन आप अपने देश के स्कूलों में बदलाव शुरू करते हैं, उसी दिन से आपका पूरा देश बदलने लगता है।


किसी भी देश को बदलने का यही सबसे आसान तरीका है। अगर आप छात्रों के सोचने का तरीका बदलते हैं तो यही छात्र आगे जाकर देश का जिम्मेदार और प्रोडक्टिव नागरिक बनता है।


दुर्भाग्य से, कई मायनों में स्कूल अब पहचान खो चुके हैं और इंटरनेट की वजह से समाज में आने वाले बदलावों से पिछड़ गए हैं। स्कूलों को अब पूरी तरह से अपनी पहचान बदलनी होगी और हमें भी इस बात पर सोचना होगा कि किसी बच्चे का जीवन के 14 साल स्कूल में बिताना कितना सही है।



भारत में 15 लाख स्कूल, 85 लाख टीचर्स और 25 करोड़ छात्र हैं। यह दुनिया के सबसे बड़े स्कूल सिस्टम्स में से एक है, लेकिन अब सवाल ये उठने लगे हैं कि इस शिक्षा प्रणाली से स्किल डेवलप हो रहे हैं या नहीं।

जब मैं एक स्टूडेंट था तो हम एक टर्म इस्तेमाल करते थे- ‘रट्‌टाफिकेशन’। यानी हम किसी भी कॉन्सेप्ट को समझने के बजाय सिर्फ रट लेते थे ताकि एग्जाम की कॉपी में उसे हू-ब-हू उतार सकें।


हमें उस करिकुलम की सामयिकता को समझना होगा जो हम अपने छात्रों को पढ़ा रहे हैं। मैं हमेशा सोचता था कि मेरे लिए ये जानना क्यों जरूरी है कि बाबर कब पैदा हुआ था। या अशोक कब पैदा हुआ था। मैं ये क्यों नहीं पढ़ सकता कि उनकी सोच क्या थी जिसने भारत का नेतृत्व करने में उनकी मदद की।


अपनी सोच में ‘क्या’ से ‘क्यों’ का यही परिवर्तन स्कूलों को करना होगा। अब जब मैं 33 साल का एक आंत्रप्रेन्योर हूं तो मुझे ये समझ में आता है कि स्कूल में मैंने जो कुछ भी पढ़ा उसका 95% अपने रोजमर्रा के जीवन में मैंने कभी इस्तेमाल ही नहीं किया। यही हमारी शिक्षा प्रणाली का दुखद पहलू है।


मुझे नई शिक्षा नीति से बहुत उम्मीद है, लेकिन इसे लागू करना बहुत जरूरी है। इसे कैसे लागू किया जाता है इसी बात से ये तय होगा कि ये पॉलिसी कैसे चलती है। मुझे ये भी लगता है कि स्कूलों में हमें छात्रों को सही विषयों के बारे में सही जानकारी देनी होगी। हम स्कूल में हेल्थ केयर या सेल्फ केयर की बात ही नहीं करते हैं। हम स्कूल में रिश्तों और विश्वास स्थापित करने के बारे में बात नहीं करते। हम पर्सनल फाइनेंस के बारे में बात नहीं करते हैं।



मेरी राय में स्कूल में हम जो पढ़ाते हैं उसके अलावा इन तीन चीजों के बारे में बात करना बहुत जरूरी है-


पहली चीज है- सेहत। अगर हम WHO की सेहत की परिभाषा को देखें तो इसका अर्थ है शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से स्वस्थ जीवन। इसका अर्थ सिर्फ निरोग होना नहीं है। जब एक बच्चा छोटा होता है तो वह वाकई में इन बातों के बारे में जानकर फायदा उठा सकता है। उसे पता होना चाहिए कि वह अपनी सेहत का ख्याल कैसे रख सकता है। क्यों उसे जंक फूड या कोल्ड ड्रिंक से दूर रहना चाहिए।


पहले दिन से हमें बच्चों को यह समझने में मदद करनी चाहिए कि खुद का ख्याल रखने के लिए हेल्थ केयर को समझना कितना जरूरी है। जैसे-जैसे इंटरनेट हमारे समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा बनता जाएगा, वैसे ही पूरी मानवजाति के लिए भविष्य में मेंटल हेल्थ सबसे महत्वपूर्ण होगा। हमें छात्रों को हेल्थ केयर के बेसिक कॉन्सेप्ट समझाने होंगे।


दूसरी चीज जो बच्चों को सिखाना जरूरी है, वो है- ट्रस्ट बिल्डिंग। वैल्यू सिस्टम और झूठ न बोलना। ये ऐसे कॉन्सेप्ट हैं जिन पर हमें ज्यादा करिकुलम प्लान करना चाहिए और उदाहरणों के जरिये छात्रों को समझाना चाहिए कि समाज में क्या गलत है, जो उन्हें नहीं मानना चाहिए। बच्चों को सिर्फ गणित और विज्ञान पढ़ाने के बजाय उन्हें वैल्यूज के बारे में सिखाना चाहिए। स्कूल में यही सबसे महत्वपूर्ण विषय होना चाहिए।


तीसरी महत्वपूर्ण चीज है- पर्सनल फाइनेंस, टैक्स चुकाना और ये कैलकुलेट करना कि कितना टैक्स चुकाना है। हर छात्र को पर्सनल फाइनेंस के बारे में जानना चाहिए। कहां निवेश करना चाहिए, फिक्स्ड डिपॉजिट क्या है, कंपाउंडिंग क्या है…ये सब छात्रों को समझाना चाहिए।


जब तक स्कूलों में हर स्ट्रीम के स्टूडेंट को हम ये कॉन्सेप्ट नहीं सिखाते तब तक हम अपने देश के लिए स्मार्ट नागरिक तैयार नहीं कर सकते। मैं पॉलिसीमेकर्स से ये भी अनुरोध करना चाहूंगा कि अपनी बेसिक शिक्षा प्रणाली में ज्यादा से ज्यादा टेक्नोलॉजी को शुमार किया जाए।


छात्रों को कोडिंग के बेसिक्स सिखाए जाने चाहिए, क्योंकि भविष्य में टेक्नोलॉजी ही पूरी दुनिया पर छा जाएगी। अब वो वक्त चला गया जब टेक्नोलॉजिकल और नॉन-टेक्नोलॉजिकल कंपनियां अलग हुआ करती थीं। अब हर कंपनी टेक्नोलॉजी कंपनी होने वाली है।


आज आपको डिस्ट्रीब्यूशन के लिए भी टेक्नोलॉजी कंपनी बनना होगा। कस्टमर्स तक पहुंचने के लिए फेसबुक या इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया को जरिया बनाना होगा। इसीलिए बहुत जरूरी है कि हम छात्रों को भविष्य के लिए आज ही इंटरनेट के बेसिक्स सिखाएं। और अंत में हमें छात्रों को योग, मेडिटेशन के साथ ही शांत रहना सिखाना होगा।


हमें अपने देश के समृद्ध भविष्य के लिए अपनी शिक्षा प्रणाली से छात्रों को तैयार करने के तरीके में क्रांति लानी होगी।


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