आज़ाद हिन्द फौज की जासूस सरस्वती राजमणि : Saraswathi Rajamani -Youngest spy of india


दुनियाभर में न जाने कितनी महिलाओं ने अपने-अपने देश के लिये क़ुर्बानियां दीं और बीते वक़्त में कहीं ग़ुम हो गईं। सरस्वती राजमणि भी उनमे से एक थी। बहुत कम उम्र की जासूस और आज़ाद हिन्द फौज की सिपाही भी थी।  म्यांमार के एक समृद्ध परिवार में 11 जनवरी 1927 को  आजादी की लड़ाई के इस गुमनाम नायक का जन्म हुआ था। इनका परिवार संपन्न और देशभक्त था । 1937 में महात्मा गांधी बर्मा की यात्रा पर वहां लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति की लड़ाई के लिए एकजुट होने का आह्वान कर रहे थे. उस दौरान वो रंगून के सबसे धनी परिवार से मिले. पूरा परिवार इकठ्ठा होकर गांधी से मुलाकात कर रहा था तब उनकी 10 साल की बेटी राजामणि अपने बगीचे में बंदूक के साथ खेल रही थी. जब गांधी जी ने उस बच्ची से पूछा कि तुम शूटर क्यों बनना चाहती हो? उस बच्ची ने जबाव दिया कि मैं लुटेरों को मारना चाहती हूं. जब मैं बड़ी हो जाउंगी कम से कम एक अंग्रेज को ज़रूर मार भगाऊंगी. वे हमें लूट रहे हैं. इस बच्ची की पहचान आगे जाकर सरस्वती राजामणि के तौर पर हुई जिन्होंने आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया था.


बहुत छोटीउम्र में राजामणि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाषण से इतनी प्रभावित हुईं कि अपने सारे गहने आजाद हिंद फौज को दान कर दिए. उनकी उम्र देखकर जब वो इसे बच्ची का भोलापन समझकर, गहने लौटाने उनके घर गए तो उन्होंने उन्‍हें लेने से इनकार कर दिया.  उसी दौरान गहने लेने के बजाए राजामणि  फौज में भर्ती होने को लेकर अड़ गईं. उनका उतावलापन देखते हुए अगले ही दिन सुभाष चंद्र बोस ने उनको  और उनके 4 दोस्तों को आईएनए की खुफिया विंग में बतौर युवा जासूस भर्ती कर लिया. इसके बाद उन्होंने अपनी सहेली दुर्गा के साथ मिलकर अंग्रेजों के कैंप की जासूसी की और कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां आज़ाद हिन्द फौज को दीं. 


राजमणि ने भेष बदलकर ब्रिटिश कैंपों और कंपनी के अफसरों के घरों में बतौर घरेलू सहायक काम किया और इस तरह वो धीरे-धीरे दुश्मन के गढ़ के अंदर गुप्त एजेंट्स के रूप में अंग्रेज सरकार के आदेशों और सैन्य खुफिया सूचनाओं को जुटाकर उन्हें नेता जी सुभाष चंद्र बोस की फौज (INA) तक पहुंचाने का काम करने लगीं. बोस उनकी बहादुरी और सूझबूझ से इतने प्रभावित हुए कि उन्‍हें आईएनए की झांसी रानी ब्रिगेड में लेफ्टिनेंट का पद दिया था. राजामणि ने सेना के इंटेलिजेंस विभाग के साथ काम किया. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, राजामणि को कोलकत्ता में ब्रिटिश सैन्य अड्डे में एक कार्यकर्ता के रूप में जासूसी के लिए भेजा गया. आगे 1943 में अंग्रेजों के द्वारा नेता जी की हत्या की योजना को उजागर करने में अहम भूमिका निभाई.

राजमणि ने भेष बदलकर ब्रिटिश कैंपों और कंपनी के अफसरों के घरों में बतौर घरेलू सहायक काम किया और इस तरह वो धीरे-धीरे दुश्मन के गढ़ के अंदर गुप्त एजेंट्स के रूप में अंग्रेज सरकार के आदेशों और सैन्य खुफिया सूचनाओं को जुटाकर उन्हें नेता जी सुभाष चंद्र बोस की फौज (INA) तक पहुंचाने का काम करने लगीं. बोस उनकी बहादुरी और सूझबूझ से इतने प्रभावित हुए कि उन्‍हें आईएनए की झांसी रानी ब्रिगेड में लेफ्टिनेंट का पद दिया था. राजामणि ने सेना के इंटेलिजेंस विभाग के साथ काम किया. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, राजामणि को कोलकत्ता में ब्रिटिश सैन्य अड्डे में एक कार्यकर्ता के रूप में जासूसी के लिए भेजा गया. आगे 1943 में अंग्रेजों के द्वारा नेता जी की हत्या की योजना को उजागर करने में अहम भूमिका निभाई.

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नेता जी ने आईएनए को भंग कर दिया था. राजामणि का परिवार तबतक अपनी सृमद्धि खो चुका था. 1957 में वो अपने परिवार के साथ भारत आ गई थीं. भारत आकर उन्होंने जीवन गुमनामी और गरीबी में बिताया. लंबे समय तक अनुभवी स्वतंत्रता सेनानी ने चेन्नई में एक कमरे में अकेले जीवन व्यतीत किया. साल 2005 में तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने उन्हें एक घर दिया था. वृद्धावस्था में भी राष्ट्र के प्रति सेवा का भाव कम नहीं हुआ. वो दर्जी की दुकानों पर जाकर बचा कपड़ा इकठ्ठा किया करती थीं. उससे बने वस्त्रों को अनाथालय और वृद्धा आश्रम में दान दिया करती थीं. यही नहीं 2006 में सुनामी के दौरान उन्होंने अपनी मासिक पेंशन रिलीफ फंड में दे दी थी. 

साल 2008 में उन्होंने अपनी सेना की वर्दी और बिल्ले, ओडिशा के कटक स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस म्यूजियम को डोनेट कर दिए थे. देश के लिए अपने खून का कतरा-कतरा न्योछावर करने वाली राजामणि ने 13 जनवरी 2018 में हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया था.

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